Sandeep Vaishnav : निखार पाता एक युवा कवि

भीलवाड़ा जिले का एक छोटा सा ग्राम पंडेर के संदीप वैष्णव [Sandeep Vaishnav] मात्र 21 वर्ष की अवस्था में कवि बनने की सारी अर्हताएं रखते हैं. सन 2018 से कवताएँ लेखन के क्रम को प्रारम्भ करने वाले संदीप अपनी कविताओं में देशभक्ति का जज्बा विकसित करते हैं तो प्रेम को भी व्याख्यायित करते हैं. इतने गंभीर विषयों पर बहुत ही सहज और सरल शब्दों में अपने भावों की प्रस्तुति दे देते हैं.
अपनी काव्ययात्रा के शुरूआती प्रसंगों पर प्रकाश डालते हुए संदीप वैष्णव बताते हैं- “मेरी लेखन मैं रुचि कुछ 2018 में प्रारम्भ हुई. उससे पहले मैं काफी लेखकों की जीवनियां, अखबारों में प्रकाशित शायरियाँ,  कविताएं पढ़ता था. फिर कवियों को सुनना प्रारम्भ किया. अपने विद्यालय के प्रार्थना सत्र में कई बार कविताएं, प्रेरक प्रसंग सुनाता था, जो वास्तव में बड़े कवियों व लेखकों के होते थे. फिर धीरे धीरे मुझे लगा कि क्या मैं भी लिख सकता हूँ, तब माँ शारदे के आशीर्वाद से प्रयत्न किए. पहले प्रेम पर फिर आस पास की प्रकृति पर, देशप्रेम पर, जो मन में भाव आता उस पर लिखना प्रारम्भ किया.
Sandeep Vaishnav
अपने माता पिता के साथ संदीप
काव्य साधना में मिले सहयोग की चर्चा करते हुए संदीप बताते हैं- “मैं लिखने का अभ्यास कर रहा था. इस कालांतर में मेरे प्रिय मित्र रविराय जी सुखवाल, जो कि मेरे भ्राताश्री समान है उनसे काफी चर्चाएं की. मेरी मां ने हमेशा मेरे प्रयत्नों की सराहना की. शाहपुरा महाविद्यालय में भी कई बार कविता पाठ में पुरुस्कार मिले. फिर एक समूह ‘हारिल’ जो काफी अच्छे नए कवियों का समूह है, उसमें जगह मिली काव्यपाठ किया, उसमें श्रीकांत जी सरल, ललित दादा, रुद्र भैया, सुनील भैया आदि कवियों ने मार्ग प्रशस्त किया.

Sandeep Vaishnav की रचनाओं का नमूना 

 

कविता पाठ करते हुए संदीप
संदीप वैष्णव बहुत कम समय में अनेकों कविताओं की रचना कर चुके हैं. उनकी रचनाएँ उनके भावों का दर्पण है. उनसे रूबरू कराने के लिए उनके द्वारा रचित एक कविता क्रिएटर्स मंच के पाठकों हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं-
मेरे ख्वाब तो कुछ और है, मेरी हक़ीक़ते कुछ और है,
मुजे बेखयाली में मिला, ये चाहतो का दौर है।
मेरे ख्वाब तो कुछ और है……..
राह तो अनजान है, बस एक ही अरमान है,
मैं खामोशी ही सही, मेरी मंजिलो का शोर है।
मेरे ख्वाब तो कुछ और है……..
साथ चाहा यार का, जो मिल न सका उस प्यार का,
मेरी कोशिशें नाकाम,मुझ पर बंदिशे पुरजोर है।
मेरे ख्वाब तो कुछ और है……..
गम के तम में भी पड़ा, पर सूर्य अकेला है खड़ा,
कुछ कातिलों को यह लगा, मेरी हिम्मते कमजोर है।
मेरे ख्वाब तो कुछ और है……..
कंठ सूखे,गाल सूखे, खेत ओर सब ताल सूखे,
आने वाली पवन कहती, अब घटाएँ घनघोर है।
मेरे ख्वाब तो कुछ और है……..
में नवजीवन का बीज दुँ, में समंदर को सींच दुँ,
में अडिग हिमालय डिगा सकू, मेरे हौसलों में जोर है।
मेरे ख्वाब तो कुछ और है……..

पढ़िए एक और कविता

बैठे रहते सब लोग बड़े, अब भी बरगद की छाओं में,
ऐ शहरी लोगो आकर देखो, बसता है भारत गाँवों में।
तुम क्या जानो पेड़ो की भाषा, जो पंछी गाते रहते है,
जंगल,खेतो की अभिलाषा, जो वो हमे सुनाते रहते है,
हम अब भी अपने खेतो पर, हल ही चलाया करते है,
हम अपने हाथों से लगे गेहूं की, रोटी खाया करते है।
सबका पेट बस भर जाए, तो सह लेते काँटें पाओं में,
ए शहरी लोगो आकर देखो, बसता है भारत गाँवो में।
हम साँझ-सवेरे, पास-पड़ोसी, मंदिर जाया करते है,
पास मस्जिद में रोज मौलवी, अजान सुनाया करते है,
यहाँ प्रेम स्नेह सदभाव कर्म को अपना जाना जाता है
और छोटी सी तू-तू, मैं-मैं को, न दंगा माना जाता है,
यहाँ होली ईद दीवाली कटती इक दूजे की बाहों में,
ए शहरी लोगो आकर देखो, बसता है भारत गाँवो में।

मिल रहा है लोगों का प्यार 

पाठकों को, श्रोताओं को जब आपकी कविताएँ अच्छी लगने लगती है तब वो अपना प्यार लूंटाते हैं. वो प्यार किसी भी रूप में हो सकता है. संदीप को भी हर रूप में वो प्यार मिल रहा है. कोई उनको सम्मानित कर प्यार जाहिर करते हैं तो कुछ उनकी कविताओं को जन जन तक पहुंचा कर. ऐसे ही प्यार की एक झलक यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं.
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