Dharmendra Bothra : अनुभवी गायकों में दर्ज है नाम

गंगाशहर, बीकानेर निवासी तेजपुर, आसाम प्रवासी धर्मेन्द्र बोथरा [ Dharmendra Bothra ] जैन तेरापंथ समाज में चर्चित सिंगर है. संगीत की लम्बी साधना और धैर्य के साथ धर्मेन्द्र आज समाज के स्टेब्लिश गायकों में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं. अखिल भारतीय स्तर पर सूरत, गुजरात में आयोजित “तेरापंथ आइडल” जैसी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया हैं.
पिता श्री किशनलाल बोथरा और माता श्रीमति सूरज देवी बोथरा के सुपुत्र Dharmendra Bothra तीन भाई-बहिन में अग्रज है. सन 2000 से पत्नी श्रीमति हेमा बोथरा के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. अपने पुत्र और पुत्री को भी संगीत की शिक्षा देते हैं. सारेगामा जैसी प्रतियोगिता में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं.
Dharmendra Bothra

इस तरह से आये भजन गायन में 

संगीत के क्षेत्र में कदम रखने के प्रसंग का उल्लेख करते हुए धर्मेन्द्र बोथरा बताते हैं- “मैं क्लास 1 में था तब मेरे से स्कूल में नाम पूछा गया. जब मैंने अपना नाम धर्मेंद्र बताया तब दूसरा प्रश्न पूछा गया. तुम्हारा नाम धर्मेंद्र कैसे पड़ा ? मैंने कहा- पापा ने मेरा नाम धर्मेंद्र रखा ,शायद शोले पिक्चर देखके. तब मेरे से कहा गया – तुम पिक्चर देखे हो धर्मेंद्र की ? मैंने कहा- हाँ ! देखी है. फिर प्रश्न हुआ – क्या कोई गाना गाकर सुना सकते हो ? तब मैंने “ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे” यह गाना मैंने अपने अंकल संजय के साथ पूरे क्लास को सुनाया. सुनने के बाद सब को अच्छा लगा. सब ने तालियां बजाई. तब मैंने जिंदगी में पहली बार सबके सामने गाया था.”
सिंगर धर्मेन्द्र बोथरा आगे बताते हैं- “उसके बाद जब मैं कक्षा 7 में था तब एक कल्चरल पीरियड हुआ करता था. उसमें अपनी पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पर विशेष काम होता था. प्रिंसिपल लेते थे वह कल्चरल क्लास. उसमें मुझे गाने का मौका मिलता रहता था. कक्षा 8,9,10 तक मैंने अनेक सिंगिंग कंपटीशन जीते. जब स्कूल का एनुअल डे होता था तब मैं सिंगिंग की परफॉर्म करता था. जब वहां सफलता मिली. साथियों की सरहाना मिली तब सिंगिंग में आगे बढ़ने का मानस बन गया.”

ऐसे मिला Dharmendra Bothra को भजन गायन में मौका 

भजन गायन के क्षेत्र में आने के सन्दर्भ में धर्मेन्द्र बताते हैं- “जब स्कूली पढ़ाई कर रहा था तब प्रमोद मुनि का तेजपुर आगमन हुआ. उन्होंने गायन क्षमता को देखकर मुझे भरी सभा में (जैन मंदिर में) एक गीतिका गाने के लिए प्रेरित किया. गीतिका के बोल थे “हे प्रभु कैसे मुक्ति मिले, राह तुमको दिखानी पड़ेगी”. उसके बाद जब मैट्रिक में था तब मेरे अंकल श्री राजेंद्र जी बोथरा तेजपुर में क्लासिकल म्यूजिक सिख रहें थे. उस समय मैंने उनसे हरमोनियम सीखा. लगभग दो-तीन महीनों में हरमोनियम सीख गया और धुन निकालने लग गया.”
अलबम रिकॉर्डिग करवाते हुए
धर्मेन्द्र बोथरा आगे बताते हैं- “उसके बाद मैंने आरंभिक क्लासिकल शिक्षा ली. ढाई – तीन साल का कोर्स किया. मेरे संगीत गुरु पूर्णवृत देव गोस्वामी से एक साल तक रियाज किया. फिर 2006 में मुझे कंपटीशन में भाग लेने का मौका मिला. जो की सूरत में थी “तेरापंथ आइडल” नाम से. उस कंपटीशन में मुझे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ. उस दिन स्टेडियम में लगभग 10,000 से ज्यादा दर्शक थे. उस समय का वीडियो मेरे यूट्यूब चैनल पर पोस्ट किया हुआ है.”

इन प्रतियोगिताओं में लिया है भाग 

गायक धर्मेन्द्र बताते हैं-  “सन 2007 में मैं सिरियारी से वापस आ रहा था तब मुझे तेरापंथ युवक परिषद, दिल्ली के कुछ कार्यकर्ता मिले. उन्होंने मुझे कहा कि हम जल्दी ही ऑल इंडिया स्तर का एक कंपटीशन आयोजित करेंगे. उसमें आप जरुर भाग लेना. वह प्रतियोगिता 2008 में दिल्ली के सीरीफोर्ट ऑडिटोरियम में आयोजित हुई. उसमें मैंने अच्छी प्रस्तुतियां दी और 3rd स्थान प्राप्त किया. 2010 में मैंने गुवाहाटी में मारवाड़ी युवा मंच द्वारा अखिल भारतीय मारवाड़ी लोकगीत प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था उसमें मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया. इस तरह से मेरी यह गीतों की और भजनों की यात्रा चलती रही.”

इन जगहों पर हुए हैं कार्यक्रम 

सारेगामा जैसी अनेकों प्रतियोगिताओं में भाग लेने के साथ Dharmendra Bothra अलग- अलग शहरों में संगीत के कार्यक्रम भी देते हैं. उनके द्वारा दिए गए कार्यक्रमों के शहरो की लिस्ट इस प्रकार है- उदयपुर (रावलिया कला) उदयपुर के पास वल्लभनगर, जयपुर, कोलकाता, सूरत, मुंबई (मुलुंड), बेंगलुरु, सिरियारी, गंगाशहर (शक्ति पीठ), बीकानेर, चारभुजा जी, बंगाईगांव, तिनसुकिया, नौगांव, खारुपेतिया, ढेकियाजुली, गुवाहाटी, रंगापारा, दिल्ली, नोखा [राजस्थान] इत्यादि.

इस तरह मिलता है सम्मान 

कला के क्षेत्र में जो तपस्या करता है और धैर्य रखता है उसे सफलता अवश्य मिलती है. इसका जीता जागता उदहारण है धर्मेन्द्र बोथरा. इन्होने कदम दर कदम आगे बढ़ते हुए अनेकों सम्मान प्राप्त किये हैं. धर्मेन्द्र को दो अलंकरण भी समाज ने दिए हैं. जैन श्वेतांबर श्री संघ द्वारा “गायक श्री” का अलंकरण मिला तो श्री गौड़ी पारसनाथ मंदिर समिति द्वारा “संगीत रत्न” की उपाधि प्राप्त हुई. क्रिएटर्स मंच के पाठकों के लिए उन सम्मानों की झलकियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं-

 

यह आये हैं ऐलबम

अपने ऐलबम के बारे में धर्मेन्द्र बताते हैं-  “मेरी पहली धार्मिक ऑडियो कैसेट 1997 में “आचार्य अभिवंदना” जैन तेरापंथ के दसों आचार्यों को समर्पित थी. दूसरा आचार्य भिक्षु को समर्पित था. तीसरा आचार्य तुलसी को समर्पित था.”

प्रिंट मीडिया में मिला स्थान 

 

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