Subhash Kabra : शब्दों के शिल्पकार
मुम्बई के Subhash Kabra कवि, लेखक और मंच संचालक के तौर पर पहचान बनाने वाले एक विशिष्ठ व्यक्तित्व है. उनकी अनुभव और ओज युक्त वाणी सुन हर कोई मन्त्र मुग्ध हो जाता है. CREATORS MANCH की टीम के विशेष आग्रह पर उन्होंने अपने जीवन के अनमोल प्रसंगों को साझा किया है. उनके यह अनुभवों से परिपूर्ण प्रसंग नई प्रतिभाओं के लिए प्रेरणा है.
छ : पुस्तको के लेखक Subhash Kabra बताते हैं – “यह 1976 की बात है. तब मैं महज 21 वर्ष का था. उस समय कुछ ऐसी परिस्थियाँ बनी. मैंने मन बना लिया था कि कम उम्र में ही परिवार को सहयोग करूंगा. वैसे मैंने पारिवारिक व्यवसाय में पिताजी के पुरुषार्थ के कारण अपने शहर अकोला में बहुत अच्छे दिन भी देखे थे और सरकारी पॉलिसी के कारण भी. उस समय मैं पहली बार मुम्बई आया और नौकरी करनी स्टार्ट कर दी.
शब्दों के शिल्पकार Subhash Kabra आगे बताते है- “अकोला में 72 – 73 में लिखने पढ़ने वालों ने “अक्षर” नाम की एक संस्था बनाई थी. जिसमें प्रतिमाह शहर के कई साहित्यकार जुटते थे और हर बार नई रचना सुनाते थे. नई रचना का पाठ ही शर्त होती थी. मुंबई आने से पहले अक्षर में पढ़ने का लाभ ये हुआ कि पढ़ते समय पैर कांपने बंद हो गए. मुंबई में जब भी अवसर मिला,अपनी कच्ची पक्की रचनाएं पेश करने की कोशिश की. पर खुद को इस महानगर का अभ्यस्त बनाने में वक्त लगा. इस शहर ने आत्मनिर्भर होना सिखाया और अनुशासन भी.”
अपनों का मिला हमेशा सहयोग – Subhash Kabra
संघर्षो के दिनों में साथ देने वालों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया – ” पत्नी सुमित्रा ने हर मोड़ पर साथ दिया. मैं निराश होता तो वो ये कह कर हौसला बंधाती थी कि एक रोज आपको भी कोई स्टेज पर बुला कर गुलदस्ता देगा. “
लेखन के प्रारम्भिक दौर की चर्चा करते हुए सुभास कालरा ने कहा- “मुझे मुम्बई से जितना सोचा था उससे कंही ज्यादा मिला. कुछ मेरी जिद, कुछ परिवार का सहयोग, कुछ दोस्तों की दोस्ती और सरस्वती की कृपा का परिणाम मानता हूँ. परिवार में कोई लेखन के क्षेत्र में नहीं था पर माँ ने बहुत साहित्य पढ़ा था. महज 8 वीं पास माँ को श्रेय जाता है जो आज भी मेरी नई पंक्तियों को सुनती हैं और हौसला बढ़ातीं हैं.”
मंच संचालक बनने की घटना का जिक्र करते हुए Subhash Kabra ने कहा- “मेरी शुरुवात मंच पर हास्य कवि के तौर पर हुई थी. शुरुवात में 10 – 15 मिनट मिलते थे. बातें खूब कर लेता था। एक रोज शरद जोशीजी बोले कि तुममें एक संचालक छिपा हुआ है. मुझे तो रात भर नींद नहीं आई. घनश्याम अग्रवालजी और बालकवि बैरागीजी ने भी ऐसा ही कुछ कहा तो मैंने बहुत छोटे छोटे आयोजन बतौर संचालक करने शुरू किये. सौभाग्यशाली हूँ कि शुरू से ही स्थानीय और देशभर के बड़े कवियों का साथ और आशीर्वाद मुझे मिलता रहा. बस, ऐसे ही शुरुवात हुई थी.
इन व्यक्तियों का रहा प्रभाव
सुभास जी आगे बताते हैं – “हास्य कविता में शैल चतुर्वेदीजी की बातचीत की शैली मुझे बहुत पसंद थी,माणिक वर्मा जी की व्यंग्य रचनाएं और शरद जोशीजी की विषय पर पकड़. संचालकों में उर्मिलेशजी से प्रभावित रहा, जो बड़ी काव्यात्मकता के साथ मंच सञ्चालन भी करते थे और सार्थक रचनाएं भी पढ़ते थे.
धारावाहिक लेखन की ओर रुझान के बारे में उन्होंने बताया – ” जिन दिनों मुंबई में सुरेंद्र शर्मा भाई साहब जी की “चार लाईना” प्रोग्राम कर रहा था उन्ही दिनों निर्माता दिनेश बंसल जी ने शैल चतुर्वेदीजी के माध्यम से मुझे बुलवाया. उन्होंने प्रोग्राम सुने थे। मुझ जैसे मूडी से बंसलजी ने एक सीरियल लिखवाया , वो हिट हो गया और सीरियल लेखन की डगर खुल गई.
टी वी और रेडियो से भी आप जुड़े रहे के प्रश्न पर उन्होंने कहा – “हाँ,ई टी सी चैनल और भाई गौतम अधिकारी ने प्राइवेट चैनलों के लिए मुझ से प्रोग्राम करवाए. मुंबई दूरदर्शन और आकाशवाणी में भी अवसर मिलते रहे. हर जगह मित्र बन गए थे तो थोड़ी आसानी रहती थी और मित्रों को मेरे सहयोग से कवी – कलाकार मित्र भी मिल जाते थे क्योंकि मेरी भूमिका तो संचालक की ही रहती थी.
लेखन में मिली ऐसे पहचान
व्यंग लेखन को पहचान कहाँ से मिली और किस किस को पढ़ा के जवाब में कालरा जी ने बताया – “मैंने जोशीजी,परसाईजी,शुक्लजी जैसे गुरुजनों को खूब पढ़. शरद जोशीजी मेरे प्रिय लेखक गुरु हैं. सौभाग्य रहा कि जोशी सर का प्रिय भी रहा और उनके साथ काफी वक्त बिताने का मौका भी मिला. व्यंग पढ़ने का मौका दिया मुंबई की ही संस्था “चौपाल ” ने. बल्कि सर्वश्री राजेंद्र गुप्ताजी,शेखर सेन,अशोक बिंदल,अतुल तिवारी और अशोक बांठिया ने. बाद में छपने छपाने का दौर भी शुरू हुआ और महफ़िलों में व्यंग्य पढ़ने का भी.
आपको मंच ज्यादा आकर्षित करता है या व्यंग्य लेखन प्रश्न का जवाब देते हुए बताया – “मंच मेरी पहचान है ,मेरे किचन का रखवाला है तो व्यंग्य मेरा निजी सुख और मन का संतोष. दोनों आकर्षित करते हैं. दोनों जगह जाता भी हूँ. मंच से जब 3 – 4 घंटे लोगों को हंसा कर टीम लौटती है तो उस रात सबको अच्छी नींद आती है. पैसे भी मिलते हैं. सुकून रहता है. व्यंग्य की महफ़िलों से लौटता हूँ तो अलग तरह की संतुष्टि होती है कि प्रबुद्ध श्रोताओं ने मुझे भी आशीर्वाद दिया.
यह है किताबों के नाम
अपनी किताबों की चर्चा करते हुए बताया – ” मेरी छ: किताबें आ चुकी हैं। दुष्यंत विधा पर “कबूतरखाने के लोग” जिसकी भूमिका कमलेश्वरजी ने लिखी थी. क्षणिकाओं की किताब “कुछ तो है” जिसकी भूमिका डॉक्टर दामोदर खड़से जी ने लिखी थी. व्यंग्योक्तियों की किताब “पढ़ो,समझो, और मत मनो” जिसकी भूमिका विश्वनाथ सचदेवजी ने लिखी थी.भजनों की किताब “मझधार के पार” जिसकी भूमिका अनूप जलोटा जी ने लिखी थी और बाल मन की कवितायेँ “बच्चों की बातें ” जिसकी भूमिका निदा फाजली साहब ने लिखी थी. तीन लेखको के व्यंग “व्यंग्यत्रयी” जिसकी भूमिका वागीश सारस्वत ने लिखी है.
हर फिल्ड में मिला है सम्मान
महान व्यक्तित्व सुभाष काबरा जी को हर क्षेत्र में सम्मान मिला है. उस सम्मान के कुछ फोटोज आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है –
Subhash kabra ji ka sahitya m yogdan hamesha k liye amar ho jayega
Unke chhote chhote vyang lajawab hote h.
Kabraji ko meri taraf se hardik badhayi.
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