Kamlesh Bharatiya : प्रसिद्ध कथा साहित्यकार
होशियारपुर पंजाब के कमलेश भारतीय [ Kamlesh Bharatiya ] प्रसिद्ध कथा साहित्यकार है. 17 जनवरी, 1952 को जन्में कमलेश जी ने शिक्षा-दीक्षा पंजाब में ही प्राप्त की. जीवन का अधिकांश समय भी अपने हूनर के अनुसार पंजाब में ही बिताया. वर्तमान में हिसार, हरियाणा में अपनी साहित्य साधना को आगे बढ़ा रहे हैं.
प्रभाकर-गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर से हिन्दी साहित्य में एम. ए करते हुए स्वर्ण पदक भी प्राप्त कमलेश भारतीय ने बीएड की शिक्षा अर्जित की है. उन्होंने सत्रह वर्ष की उम्र में कलम थामी, उस समय से अभी तक साहित्य लेखन की यात्रा जारी है. कथा लेखन करते हुए अब तक बारह कथा संग्रह हिंदी साहित्य को अर्पित किए हैं. इनमें पांच लघुकथा संग्रह शामिल हैं.
लेखन यात्रा पर प्रकाश डालते हुए Kamlesh Bharatiya बताते हैं- “मेरी प्रारंभ से ही मूल रूचि साहित्य में रही. सन् 1973 से लेकर 1990 तक शिक्षक, प्राध्यापक व प्राचार्य के पद पर कार्य करने के बाद दैनिक ट्रिब्यून चंडीगढ़ में उपसंपादक के रूप में कार्य किया. लगभग बाइस साल तक दैनिक ट्रिब्यून में कार्य करने के बाद मुख्य संवाददाता पद से त्यागपत्र देकर हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष का कार्यभार संभाला. तीन वर्ष तक अकादमी की कथा पत्रिका कथा समय का संपादन किया. अब स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता. साहित्य, संस्कृति व शिक्षा क्षेत्र में बराबर रूचि. नभछोर सांध्य दैनिक से जुड़ा हुआ हूं.”
Kamlesh Bharatiya की प्रकाशित कृतियां
- महक से ऊपर
- मस्त राम जिंदाबाद
- मां और मिट्टी
- इस बार
- एक संवाददाता की डायरी
- जादूगरनी
- शो विंडो की गुड़िया
- ऐसे थे तुम
- इतनी सी बात
- दरवाजा कौन खोलेगा
- यह आम रास्ता नहीं है
- मैं नहीं जानता
इतनी सी बात लघुकथा संग्रह का पंजाबी में “एनी कु गल” के रूप में प्रकाशन डाॅ किरण वालिया और कमला नेहरु काॅलेज, फगवाडा द्वारा हुआ है. देश के चर्चित साहित्यकारों से इंटरव्यूज की पुस्तक “यादों की धरोहर” के दो संस्करण प्रकाशित हुए. पंजाबी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेजी, डोगरी, बंगला, मलयालम, नेपाली आदि भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद किया जा चुका है. जालंधर, शिमला, रोहतक, हिसार, चंडीगढ़ के दूरदर्शन व आकाशवाणी केंद्रों से रचनाओं का प्रसारण हुआ है.
यह मिले हैं पुरस्कार
- सन् 1972 में लोकप्रिय हिंदी दैनिक वीर प्रताप द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में आज का रांझा लघुकथा प्रथम.
- सन् 1982 में प्रथम कलाकृति महक से ऊपर को भाषा विभाग, पंजाब की ओर से वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार।
- सन् 1990 में पटना के प्रगतिशील लघुकथा मंच की ओर से लघुकथा लेखन में योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार। इसी वर्ष लुधियाना में पटियाला के लघुकथा संगठन की ओर से सम्मानित।
- वर्ष 1992 में ऋषिकेश के कहानी लेखन शिविर में कहानी लेखन महाविद्यालय, अम्बाला छावनी द्वारा श्रेष्ठ लेखन पुरस्कार।
- सन् 1999 में हिसार में राज्यकवि स्वर्गीय परमानंद स्मृति सम्मान।
- सन् 2003 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नयी दिल्ली द्वारा कथा कृति एक संवाददाता की डायरी को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने आवास पर पचास हजार रुपये की राशि से पुरस्कृत किया।
- चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से श्रेष्ठ ग्रामीण पत्रकारिता के लिए सम्मानित।
- सन् 2008 में कैथल की साहित्य सभा की ओर से धीरज त्रिखा स्मृति पत्रकारिता सम्मान। इसी वर्ष फगवाडा में पंजाब हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से स्वर्गीय डाॅ. चंद्रशेखर स्मृति सम्मान।
- पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की पाठ्य पुस्तकों में लघुकथाएं शामिल।
- हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला की ओर से वर्ष 2010 में देशबंधु गुप्त साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार और एक लाख रुपये की राशि।
ऐसी होती है इनकी लघु कथाएँ
बारह कथा संग्रह साहित्य जगत को समर्पित कर चुके कमलेश जी की कथा कैसी होती है यह सब जानना चाहेंगे. क्रिएटर्स मंच के पाठकों के लिए उनकी सबसे प्रिय कथा यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं –
सात ताले और चाबी
– अरी लडक़ी कहां हो?
– सात तालों में बंद।
– हैं? कौन से ताले?
– पहले ताला- माँँ की कोख पर।
मुश्किल से तोड़ कर जीवन पाया।
– दूसरा?
– भाई के बीच प्यार का ताला।
लड़का लाडला और लड़की जैसे कोई मजबूरी मां बाप की। परिवार की।
– तीसरा ताला?
– शिक्षा के द्वारों पर ताले मेरे लिए।
– आगे?
– मेरे रंगीन, खूबसूरत कपड़ों पर भी ताले। यह नहीं पहनोगी। वह नहीं पहनोगी। घराने घर की लड़कियों की तरह रहा करो। ऐसे कपड़े पहनती हैं लड़कियां?
– और आगे?
– समाज की निगाहों के पहरे। कैसी चलती है? कहां जाती है? क्यों ऐसा करती है? क्यों वैसा करती है?
– और?
– गाय की तरह धकेल कर शादी। मेरी पसंद पर ताले ही ताले। चुपचाप जहाँँ कहा वहां शादी कर ले। और हमारा पीछा छोड़।
– और?
– पत्नी बन कर भी ताले ही ताले। यह नहीं करोगी। वह नहीं करोगी। मेरे पंखों और सपनों पर ताले। कोई उड़ान नहीं भर सकती। पाबंदी ही पाबंदी।
-अब हो कहां?
– सात तालों में बंद।
– ये ताले लगाये किसने?
– बताया तो। जिसका भी बस चला उसने लगा दिये।
– खोलेगा कौन?
– मैं ही खोलूंगी। और कौन?
– वाह ! यह हुई न बात।
– शुक्रिया।
कविता का एक नमूना
कवि से पूछा कि
तुम क्यों आते हो
आधी रात, चोरी चोरी
चुपके-चुपके, चोरों की तरह?
कवि ने कहा कि दूसरों के दुख चुराने
इतने आसान नहीं होते।
इसलिए हम आधी रात को आते हैं।
सुख की गठरियां छोड़कर दुःख की गठरियां उठा ले जाते हैं।।